हरितालिका तीज व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यह व्रत सुहागिन महिलाओं द्वारा पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए तथा अविवाहित कन्याओं द्वारा मनचाहे वर की प्राप्ति हेतु रखा जाता है.
हरितालिका तीज का व्रत सुहागिन एवं अविवाहित महिलाएं अपने पति अथवा भावी जीवनसाथी की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं. यह व्रत कठोर माना जाता है क्योंकि इसमें निर्जला उपवास रखना होता है. इसकी विधि इस प्रकार है—
- प्रातः स्नान और संकल्प – सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान शिव-पार्वती का स्मरण करते हुए निर्जला उपवास का संकल्प लें.
- पूजन स्थल की तैयारी – घर के पवित्र स्थान को सजाकर वहां भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
- श्रृंगार और पूजन सामग्री – माता पार्वती को सुहाग-सामग्री अर्पित करें. साथ ही बेलपत्र, फूल, दीप, धूप, फल और मिठाई चढ़ाएं.
- व्रत कथा का श्रवण – पूजा के दौरान हरितालिका तीज व्रत कथा का पाठ अथवा श्रवण करें और अंत में आरती करें.
- रात्रि जागरण – इस दिन महिलाएं पूरी रात भजन-कीर्तन और पारंपरिक गीतों के माध्यम से माता पार्वती की आराधना करती हैं.
- व्रत पारण – अगले दिन ब्रह्ममुहूर्त में पुनः स्नान कर भगवान शिव-पार्वती को जल अर्पित करें. फिर व्रत का पारण करें और दान-दक्षिणा देकर पुण्य प्राप्त करें.